Amritpal Singh: अमृतपाल पर हैरान करने वाली खुफिया रिपोर्ट, कई चेहरों वाला गैर-अमृतधारी सिख कैसे बना खालिस्तानी

24 March 2023 06:14 PM
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पंजाब में कट्टरपंथ को आगे बढ़ाने के मसकद से अमृतपाल वो सब कर रहा था जो न तो कानून के लिहाज से ठीक था और न ही सिख पंत उसकी इजाजत देता था। उसने पाकिस्तान में रह रहे सिख समुदाय के उन लोगों के बारे में कभी कुछ नहीं कहा, जिन पर आए दिन जुल्म होता है।

पंजाब पुलिस छह दिन से खालिस्तान समर्थक, अमृतपाल सिंह को तलाश रही है। वह पुलिस के बहुत करीब से निकल जाता है, मगर 80 हजार पुलिसकर्मियों को उसका सुराग नहीं लगता। उसे लेकर रोज नई सीसीटीवी फुटेज सामने आ रही हैं, मगर अमृतपाल का कोई पता नहीं। इंटेलिजेंस एजेंसी की एक रिपोर्ट में अमृतपाल सिंह को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में वह सारी कहानी है कि कई चेहरे और चरित्र वाला गैर-अमृतधारी सिख, आखिर खालिस्तान समर्थक कैसे बन गया। वेश्यावृत्ति, लैविश लाइफ स्टाइल और नशे की दुनिया में कदम रख चुका ये शख्स किस तरह नशे के सौदागर से गिफ्ट में मिली एक मर्सिडीज में सवार हो, खुद को जरनैल सिंह भिंडरांवाला 2.0 समझ बैठा। उसने पंजाब में धर्म को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। सच्चाई तो यह थी कि वह दूसरे लोगों के हाथ में खेल रहा था। इसी वजह से उसने ईसा मसीह को नीचा दिखाने की कोशिश की तो वहीं अमृतपाल ने हिंदू धर्म के खिलाफ भी आग उगलनी शुरु कर दी।

मकसद, 'पैसा और पावर' कैसे हासिल की जाए
खुफिया एजेंसी की एक खास रिपोर्ट के मुताबिक, अमृतपाल सिंह का अतीत खालिस्तान से जुड़ा नहीं रहा है। वह भले ही सिख था, लेकिन उसे खालसा पंत के सिद्धांतों से कोई सरोकार नहीं रहा। तब वह अपने जीवन को एक ऐसा अंदाज में जी रहा था कि जैसे उसके लिए पंजाब और सिख धर्म, कोई मायने ही नहीं रखता। वह देश विरोधी ताकतों के हाथ में खेल रहा था। अगर उसने 'वारिस पंजाब दे' की कमान संभाली तो उसके पीछे भी बाहरी ताकतों का हाथ रहा है। पंजाब पुलिस एवं केंद्रीय एजेंसियों ने, इस बाबत 'आईएसआई' की सक्रिय भूमिका होने से इनकार नहीं किया है। अमृतपाल और उसे निर्देश देने वाले लोगों का एक ही मकसद था कि जल्द से जल्द 'पैसा और पावर' कैसे हासिल की जाए। अमृतपाल ने मिशनरियों के क्राउड फंडिंग पर आवाज उठानी शुरु कर दी। इसके पीछे उसका मकसद यह दिखाना था कि वह सिख धर्म का एक बड़ा रक्षक है। इसके लिए उसने ईसा मसीह तक को नीचा दिखाने का प्रयास किया। अमृतपाल के मन में कट्टरता का समावेश था, इसीलिए उसने हिंदू धर्म को भी टारगेट करना शुरु कर दिया। पंजाब में उसने हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण दे डाले। अमृतसर में दिन दहाड़े हिंदूवादी नेता सुधीर सूरी की हत्या कर दी गई। हत्यारोपी संदीप सिंह उर्फ सनी, अमृतपाल का ही सहयोगी था। संदीप की कार पर 'वारिस पंजाब दे' का स्टीकर लगा हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार, सूरी की हत्या के लिए संदीप को अमृतपाल ने ही उकसाया था।

सुर्खियों में आने के लिए मौके की तलाश में था अमृतपाल
रिपोर्ट के अंश बताते हैं कि अमृतपाल को किसी भी तरह से सुर्खियों में आना था। इसके लिए वह कोई भी अवसर नहीं छोड़ता था। जब वह दुबई में ड्राइविंग करता था तो उसे सिख धर्म की शिक्षाओं से कोई लेना देना नहीं था। विदेश में उसने अय्याशी का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। उसकी वित्तीय मदद करने वाले दलजीत कलसी ने 13 वर्ष में (2007-2020) थाईलैंड की 18 यात्राएं कीं थी। उसकी इन यात्राओं के पीछे का कारण पता लगाया जाना चाहिए। संभव है कि विदेश में इन लोगों द्वारा वेश्यावृत्ति का कोई बड़ा रैकेट तो नहीं चलाया जा रहा था। बंदा सिंह बहादुर इंजीनियरिंग कॉलेज में जानबूझ कर बवाल मचवाया गया। वहां प्रवासी छात्रों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। इसके पीछे अमृतपाल का दिमाग बताया जाता है। उसी के इशारे पर खालसा वहीर के दौरान ईसाई बहुसंख्यक वाले रास्ते में जाकर सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश हुई। अमृतपाल से पहले पंजाब में खालिस्तान को लेकर जो थोड़ी बहुत बात होती थी, वह दीप सिद्धू के जरिए बाहर आती थी। उस वक्त अमृतपाल को कोई नहीं जानता था। ऐसा नहीं है कि वह सक्रिय नहीं था। वह लोगों के बीच में खुद को स्थापित करने का अवसर ढूंढता था, मगर उसका अतीत, कदमों को रोक देता था। दुबई में अमृतपाल, ड्रग माफिया जसवंत सिंह रोडे के संपर्क में आया। रोडे का भाई, पाकिस्तानी आईएसआई के लिए काम करता था। उस वक्त अमृतपाल एक गैर-अमृतधारी सिख था। उसे खालसा पंत के सिद्धांतों से कोई मतलब नहीं था।

अमृतपाल, कट्टरपंथ में तलाश रहा था अपना स्वार्थ
पंजाब में आने के बाद अमृतपाल ने पूरी तरह से कट्टरपंथ की राह अपना ली थी। इससे पहले वह एक लैविश लाइफ जीता था। रिपोर्ट के अनुसार, उसके इस परिवर्तन के पीछे राष्ट्र विरोधी ताकतों का हाथ रहा है। पंजाब में किस तरह से लोगों की भावनाएं भड़कानी हैं, इन सबके लिए अमृतपाल को होमवर्क कराया गया। उसने पंजाब में अभी तक जो कुछ भी कहा है, वह सिख धर्म की शिक्षाओं का अंश नहीं है। लोगों में अमृतपाल का प्रभाव नजर आए, इसके लिए ड्रग माफिया रवेल सिंह ने उसे गिफ्ट में मर्सिडीज कार दे दी। उसने दो सप्ताह में ऐसे कई आयोजनों में शिरकत की, जो सीधे तौर पर कट्टरवाद से जुड़े थे। अमृतसर, मुक्तसर, तरनतारन, कपूरथला और मनसा में हुए आयोजनों में ठीक ठाक भीड़ जुटी। उसने लोगों से कहा, वे अमृतधारी और शास्त्रधारी या नशीले पदार्थों से अपने जीवन को खत्म करने की बजाए सिख धर्म के लिए काम करें। सिख धर्म की राह पर चलकर वे अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहना होगा। अमृतपाल ने पंजाब सरकार को निशाना बनाते हुए कहा, सिखों के शस्त्र लाइसेंस रद्द करने का प्रयास हो रहा है। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने अपने परिवार और संगत को बचाने के लिए हथियार रखने का आदेश दिया था। उसने लोगों को यह कहकर उकसाया कि पंजाब में खालसा शासन की स्थापना करनी होगी। इसके लिए युवाओं को एकजुट होने की जरुरत है।

अमृतपाल ने नशे को लेकर किया पाकिस्तान का बचाव
भले ही पंजाब में पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिए रोजाना ही ड्रग के पैकेट गिराए जा रहे हैं, मगर अमृतपाल को ये सब नहीं दिखता था। उसने कहा, पंजाब में ड्रग्स की समस्या के लिए पाकिस्तान को दोष नहीं देना चाहिए। नशा तो दिल्ली और हरियाणा से आता है। उसने डेरा के अनुयायियों को लेकर धमकी दे डाली। अमृतपाल ने कहा, सिखों के जिन गुरुओं ने मातृभूमि के लिए अपना और अपने बच्चों का बलिदान दिया है, उनसे अपनी तुलना न करें। उसका इशारा बाबा राम रहीम की तरफ था। मूसेवाला की हत्या को लेकर अमृतपाल ने बयान दिया कि इस केस में शामिल सिखों का इस्तेमाल एक 'तिलकधारी' द्वारा सिख को मारने के लिए किया गया। उसने पंजाब में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर एक बड़ा बयान जारी कर दिया। इसमें अमृतपाल ने पुलिसकर्मियों से कहा, वे बेअदबी के मामले में कानून के अनुसार न चलें। उन्हें अपने धर्म के लिए खड़ा होना चाहिए। उसने भाई दिलावर सिंह, भाई बेअंत सिंह, भाई सतवंत सिंह और भाई केहर सिंह का नाम लिया। ये लोग पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और सीएम बेअंत सिंह की हत्या के लिए जिम्मेदार थे। पुलिस कर्मियों को उकसाते हुए उसने कहा, इन लोगों ने पहले पुलिस की नौकरी की। बाद में ये लोग अपने धर्म के लिए नौकरी से बाहर आ गए। जो पुलिस वाला, कर्तव्य की राह पर अपना बलिदान देता है, उसे कुछ समय बाद भुला दिया जाता है। इसके चलते पुलिस कर्मियों को सिख पंथ के पक्ष में खड़ा होना चाहिए।


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